सर्वाइकल कैंसर – कुछ तथ्य #2 बचाव

पिछले ब्लॉग में हम ने देखा कि इलाज में किस तरह की गलतियां होने से कैंसर लाइलाज हो जाता है। सही डॉक्टर चुनने और सही जानकारी रखने के अलावा मरीज़ के हाथ मे कुछ नहीं होता। परन्तु अपनी जानकारी तब तक बेकार होती है जब तक उसके अनुसार कार्य न किया जाए। आज मैं ऐसी बातों बर चर्चा करूंगी जिसमें आप के हाथ में सब कुछ है।

सर्वाइकल कैंसर HPV वायरस की कुछ प्रजातियों के कारण होता है और यह यौन संबन्ध से फैलता है। एक बार यौन संबन्ध आरंभ हो गए, तो HPV से संक्रमण की दर 80% तक होती है। उम्र के साथ साथ नई प्रजातियों से संक्रमण होने की संभावना बनी रहती है। इन संक्रमित महिलाओं में से तीन चौथाई अपनी ही रोग प्रतिरोधक क्षमता से संक्रमण को नष्ट कर देती हैं। शेष चौथाई में यह वायरस रह जाता है और धीरे धीरे कोशिकाओं में परिवर्तन करने लगता है। जिससे पहले पूर्व कैंसर, CIN या डिस्प्लेज़िया कहा जाता है और इस अवस्था में उपचार न होने पर कुछ प्रतिशत में आगे बढ़कर कैंसर हो जाता है।

विश्व का 25% सर्वाइकल कैंसर भारत में है और विश्व की सर्वाइकल कैंसर से होने वाली 27% मौतें भारत में होती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह पूरी तरह बचाव योग्य है।
बचाव के लिए केवल जानकारी नही रखनी है, उस जानकारी केे अनुसार कार्य भी करना है।

क्या करें आप?

  • टीका करण

    1. अपनी किशोरी बालिकाओं को HPV का टीका 13 वर्ष की उम्र के पहले लगवा दें।
    2. यदि 13 वर्ष की उम्र तक न लगवा पाए हों तो 18 वर्ष तक।
    3. यदि 18 वर्ष की उम्र तक न लगवा पाए हों तो 26 वर्ष तक।
    4. यदि 26 वर्ष की उम्र तक भी न लगवा पाए हों तो विवाह के पूर्व अवश्य लगवा दें।
    5. टीके की 3 डोज़ लगती हैं। 2 कंपनियों के टीकेे उपलब्ध हैं।
    6. तीनो डोज़ की कुल कीमत 10,000 रुपए से कम है।
  • स्क्रीनिंग

    1. चूंकि पूर्व कैंसर के कोई लक्षण नहीं होते, अतः प्रथम यौन संबन्ध के 5 वर्ष बाद प्रथम स्क्रीनिंग प्रारंभ हो जानी चाहिए।
    2. सब सामान्य रहने पर भी 65 वर्ष की उम्र तक स्क्रीनिंग होनी चाहिए।
    3. स्क्रीनिंगका अंतराल इस बात पर निर्भर है की स्क्रीनिंग किस विधि से की जा रही है।
    4. पैप स्मीयर को अधिकतम एक वर्ष के अंतराल पर किया जाना चाहिए।
    5. HPV-HC2 करने पर अंतराल 5 वर्ष का हो सकता है।
    6. HPV-HC2 + LBC करने पर अंतराल 7 वर्ष का हो सकता है।
  • CIN का उपचार

    1. स्क्रीनिंग में कोई खराबी पता चलने पर कॉल्पोस्कोपी की जाती है।
    2. कॉल्पोस्कोप से यह स्पष्ट दिखाई देेता है कि कोई संक्रमण है, कोई छाला है, पूर्व कैंसर है, या फिर कैंसर है।
    3. संक्रमण का दवाओं से उपचार हो जाता है।
    4. छाला है, जो कैंसर नहीं है तो उसे विशेष उपकरणों से जला दिया जाता है।
    5. पूर्व कैंसर अथवा CIN है तो उसे विशेष उपकरणों से काट कर निकाल दिया जाता है। इस प्रक्रिया को LEEP/LLETZ कहा जाता है। 90% केसेज़ में यह उपचार पर्याप्त होता है। गर्भाशय निकालने की कोई आवश्यक्ता नहीं होती।
    6. कैंसर होने पर बायोप्सी कराना ज़रूरी होता है।

यह सारे उपचार हमारे यहॉं आवश्यक्ता होने पर ही किए जाते हैं, भर्ती करने की कोई आवश्यक्ता नहीं होती। अपने 14 वर्षों के पूर्व कैंसर इलाज के अनुभव में मैंने कोई गम्भीर साईड इफैक्ट नहीं देखे । यहॉं तक कि बाद में सुख पूर्वक गर्भ व प्रसव भी हो जाता है। पूर्व कैंसर का इलाज करने पर जब तक स्क्रीनिंग टेस्ट नेगेटिव न आ जाए, तब तक वर्ष में एक बार जॉंच कराना अनिवार्य है।

कैंसर के लक्षणों पर चर्चा अगली बार।

डॉ० आशा जैन

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